गांधीनगर सीट से लालकृष्ण आडवाणी की जगह अमित शाह का नाम घोषित

 


आडवाणी युग का अंत
गांधीनगर सीट से लालकृष्ण आडवाणी की जगह अमित शाह का नाम घोषित किया गया है.आडवाणी इस सीट से 1998 से चुनाव जीतते रहे थे लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें मौका नहीं दिया है.
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में यह कहा गया कि अमित शाह राजनीतिक तौर पर भीष्मामह माने जानेवाले आडवाणी की जगह लड़ रहे हैं, जिन्हें भारतीय राजनीति से ‘जबरदस्ती’ रिटायर किया गया है। संपादकीय में यह कहा गया- “लालकृष्ण आडवाणी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह कहा जाता है। लेकिन, उनका नाम लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों की सूची में नहीं है। यह कोई हैरान करनेवाली बात नहीं है।”
शिवसेना ने कहा कि इसके बाद यह जाहिर होता है का बीजेपी के आडवाणी युग का अंत हो गया है। संपादकीय में यह कहा गया- “अडवाणी छह बार गुजरात के गांधी नगर लोकसभा सीट से चुने गए। अब इस सीट से अमित शाह लड़ेंगे। इसका साधारण अर्थ यह है कि उन्हें जबरदस्ती रिटायर किया गया है।”
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि गुजरात की गांधीनगर लोकसभा सीट से जितनी भी बार लालकृष्ण आडवाणी ने सफलता हासिल की, उसके पीछे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह थे। भाजपा ने इससे एक दिन पहले गुरुवार को गांधीनगर सीट से शाह को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की। आडवाणी 1998 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीएल पुनिया ने कहा कि इस लिस्ट को देखने से भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तन नजर आता है. लाल कृष्ण आडवाणी जैसे धुरंधर सांसद की जगह तड़ीपार रहे अमित शाह जगह ले रहे हैं. जनता सब जानती है कि कैसे एक व्यक्ति के शिकंजे में पूरी पार्टी चली जा रही है. बता दें कि गांधीनगर सीट से लाल कृष्ण आडवाणी 6 बार सांसद रहे हैं. उधर, क्या आडवाणी का टिकट काटा गया गया के सवाल पर अरुण जेटली ने कहा कि काटा जाना जैसा शब्द इस्तेमाल करना उचित नहीं है. पार्टी का इंटरनल सिस्टम होता है जिस का हिस्सा पार्टी के सभी बड़े लोग होते हैं.
इससे पहले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, 'पहले लाल कृष्ण आडवाणी को ज़बरन ‘मार्गदर्शक' मंडल में भेज दिया, अब उनकी संसदीय सीट भी छीन ली. जब मोदी जी बुज़ुर्गों का आदर नहीं करते, वह जनता के विश्वास का आदर कहां करेंगे? भाजपा भगाओ, देश बचाओ.'
आज की पीढ़ी को शायद याद नहीं होगा कि किस तरह अडवाणी की एक ज़माने में तूती बोलती थी. उनकी लगभग पूजा होती थी और आरती उतारी जाती थी.
बाबरी मस्जिद अभी गिरी नहीं थी. आडवाणी ने जब रथ यात्रा शुरू की थी तो वो हिंदुत्व और भाजपा दोनों को प्रमोट कर रहे थे
भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं।
भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम है लालकृष्ण आडवाणी। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी।
वर्ष 1951 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की। तब से लेकर सन 1957 तक आडवाणी पार्टी के सचिव रहे। वर्ष 1973 से 1977 तक आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व संभाला। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने संभाला।
इसी दौरान वर्ष 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बीच में ही गिरफ़्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुँचा दिया था। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है।
लालकृष्ण आडवाणी तीन बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। आडवाणी चार बार राज्यसभा के और पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे। वर्तमान में भी वो गुजरात के गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के सांसद हैं। वर्ष 1977 से 1979 तक पहली बार केंद्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से लालकृष्ण आडवाणी ने दायित्व संभाला। आडवाणी इस दौरान सूचना प्रसारण मंत्री रहे।
आडवाणी ने अभी तक के राजनीतिक जीवन में सत्ता का जो सर्वोच्च पद संभाला है वह है एनडीए शासनकाल के दौरान उपप्रधानमंत्री का। लालकृष्ण आडवाणी वर्ष 1999 में एनडीए की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेत़ृत्व में केंद्रीय गृहमंत्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून 2002 को उपप्रधानमंत्री पद का दायित्व भी सौंपा गया।
बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में आडवाणी की अहम भूमिका रही है लेकिन आज की तारीख़ में आडवाणी बीजेपी में हाशिए पर हैं और सक्रिय राजनीति से बिल्कुल अलहदा हो गए हैं।
ये वही आडवाणी हैं जिन्होंने 1984 में दो सीटों पर सिमट गई भारतीय जनता पार्टी को रसातल से निकाल कर पहले भारतीय राजनीति के केंद्र में पहुंचाया और फिर 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया.उस समय जो बीज उन्होंने बोए थे, लेकिन अब लगता है आडवाणी भारतीय राजनीति तो क्या भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में आप्रासंगिक से हो गए हैं। आडवाणी न तो कभी प्रधानमंत्री बन पाएं , न ही राष्ट्रपति.और अबकी बार सांसद।
तमन्ना फरीदी


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