:माँ को समर्पित:--👉👉*सन्तानों को आत्म निर्भर बनाने में सिर्फ मां की ही तपस्या फलीभूत होती है *::==डॉ. जितेंद्र सिंह आर्य

माँ को समर्पित डॉ0 जितेन्द्र सिंह आर्य (शिक्षाविद) वर्मा नगर,आगरा रोड एटा(उ0प्र0) आत्मकथा  👉👉

मेरा 45 वर्षों का अनुभव है कि जिनके पिता कितने भी ईश्वरीय साधक या तपस्वी रहे हों,उनकी तपस्या से सिर्फ़ उनको ही व्यक्तिगत लाभ हुआ है या आनन्द की प्राप्ति हुई है किन्तु इसके विपरीत यदि माँ में यदि ईश्वरीय साधना एवं तपस्या का गुण है तो इसका लाभ उसकी सन्तानों के सुखी जीवन को देखकर आप निष्कर्ष तक पहुंच सकते हो।सर्वप्रथम मैं अपनी ननिहाल हिम्मतपुर काकामई (बादामपुर) एटा से अपने अनुभव प्रारम्भ कर रहा हूँ।

वहाँ मेरी नानी जवानी में विधवा हो गईं, उसके बाद थोड़ी सी अचल संपत्ति से मेहनत करके नित्य ईश्वरीय साधना करते हुए 6 बच्चों की परिवरिश की।उनके दोनों बेटे सरकारी नौकरी में पहुँचकर पुलिस अधिकारी बनकर सेवानिवृत्त हुए।

तपस्विनी मां में छल-कपट नहीं होता है जबकि बाप के तपस्वी होने पर भी छल-कपट विद्यमान रहते हैं।इसलिए उस तपस्या का फल उसे सिर्फ व्यक्तिगत भोग व सुख के लिए मिल पाता है किन्तु पूरा परिवार  दुःखी का दुःखी रहता है।उसके बाद मेरी बड़ी बहन मुन्नी( सत्यप्रभा) नगला महारी(हाथरस) में उनकी पूज्य स्व0 सासुजी तपस्विनी मिलीं।उनके 7 बच्चों में 6 लड़के सरकारी नौकरी में लगे एवं उन्हें दामाद भी सरकारी नौकरी वाले मिले।

2 लड़के उनके भी पुलिस में दरोगा से सेवानिवृत्त हुए।उसके बाद मैंने अपने छोटे मामा सिद्धनारायन जी पूर्व पुलिस इंस्पेक्टर की ससुराल पटनी अर्थात छोटी मामी श्रद्धेय कमला देवी के मैके में अनुभव किया कि उनके पिता स्व0 श्री कन्हई सिंह की ईश्वरीय तपस्या का सीधा प्रभाव उनके बेटों से अधिक चारों बेटियों पर पड़ा और उनका विवाह उनके संस्कारों से सभी का अच्छे घरों में हुआ।

उन सभी को भाग्य से समर्पित व सहयोगी पति मिले। इन चारों बहनों ने भी अपना परिवार तो सुखमय बनाया ही उसके बाद अपनी सभी सन्तानों को भी अच्छे पदों पर पहुंचाकर स्वावलम्बी बनाकर पूर्ण सुखी हैं, इसके विपरीत इनके तीनों भाइयों एवं उनकी सन्तानें सिर्फ सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 

इन सबके बाद मैं अपने घर पर आता हूँ।

मेरी 2 माताएं थी,मेरी माता बड़ी थी,जिसका जीवन बचपन से ही कष्टों में व्यतीत हुआ।वह ईश्वरीय साधना भी नहीं जानती थी।कोई जो बता देता,उसी तरह उपवास व पूजा अपने बच्चों के भविष्य के लिए करती रहती थी।परिणाम स्वरूप उसके भी दोनों बेटे ससम्मान सरकारी नौकरी में अपना सुखमयजीवन बिता रहे हैं।जबकि पिताजी के बड़े तपस्वी होने पर भी मेरी छोटी मां, मायादेवी के दोनों लड़के दर-दर भटककर जीवनयापन कर रहे हैं।

कितना अन्तर है माता और पिता की ईश्वरीय साधना या तपस्या में।पिता कभी अपने स्वयं के ही दुःख दूर नहीं कर पाया औऱ मां ने अपने पति के साथ बच्चों के भी दुःख  दूर कर दिए।

वास्तविकता में मेरे इन सच्चे उदाहरणों से देखा जाए तो तपस्विनी माता से बढ़कर कोई भगवान नहीं हैं।वो अपने सच्चे प्रेम एवं समर्पण से ही अपने परिवार को धन्य करके जाती है जबकि पिता तपस्या का ढोंग करके इस दुनियाँ में मृत्यु तक दुःखी एवं उलझनों में अशांति से ही इस दुनिया से जाता है।

वास्तविक भारत की तपस्विनी माताओं के सामने विश्व की माताओं की तुलना नहीं की जा सकती हैं।

    अनुभवकर्ता-👉👉👉👉

               डॉ0 जितेन्द्र सिंह आर्य
                 (शिक्षाविद) वर्मा नगर,
                 आगरा रोड एटा(उ0प्र0)

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