खास खबर में::-👉👉बलजीत सिंह बेनाम की दिल को छूने वालीं ग़ज़ल पढ़े::==विस्तार से

:👉ग़ज़ल

अपनी ही जान की अमाँ से गुरेज़
शोख़ कलियों को बाग़बाँ से गुरेज़

ख़ूँ की नदियाँ बहा दीं पाने को
कर रहा अब उसी मकाँ से गुरेज़

बदज़ुबाँ से तो हँस के मिलते हैं
और करते हैं बेज़ुबाँ से गुरेज़

दो क़दम क्या चले अकेले तुम
हो गया आज कारवाँ से गुरेज़

कल तलक़ सुनने को तरसते थे
यक़बयक़ क्यों है मेरी हाँ से गुरेज़

:👉👉 ग़ज़ल 

मोहब्बत के नग़में सुनाना मना है
यहाँ कोई महफ़िल सजाना मना है

किसी को डुबोना तो फ़ितरत जहां की
मगर डूबते को बचाना मना है

चलो फ़ैसले पर ज़रा गौर कर लें
अगर उम्र तन्हा बिताना मना है

जले दीप कितने बुझाओ है मर्ज़ी
बुझे दीप लेकिन जलाना मना है

नगर पे गिरे बर्क़ इनकी बला से
निग़ाहों के पर्दे गिराना मना है

गुहर हाथ जब तक न लग जाए तेरे
किनारे पे तेरा तो आना मना है

जहां बेज़ुबानी की रस्मे बनी हों
वहां तीर खा छटपटाना मना है

 बलजीत सिंह बेनाम 

सम्पर्क सूत्र:👉👉 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, नज़दीक इम्प्रैशन इंस्टिट्यूट,हांसी 125033 ज़िला हिसार( हरियाणा)

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