अपनी निडरता और क्षत्रिय वंश के कारण की यदुवंशीयों का नाम 'अहीर' यादव.


भगवान श्री कृष्ण के यदुवंश का सम्पूर्ण परिचय....


जाति ........... यादव / अहीर
वंश .......... चंद्रवंशी छत्रिय
कुल .......... यदुकुल / यदुवंशी
इष्टदेव .......... श्रीकृष्ण
ऋषिगोत्र....... अत्रेय /अत्रि...आदि 150 के लगभग
ध्वज ......... पीताम्बरी
रंग ......... केसरिया
वृक्ष ......... कदम्ब और पीपल
हुंकार ......... जय यादव जय माधव
रणघोष ......... रणबंका यदुवीर
निशान ......... सुदर्शन चक्र
लक्ष्य ......... विजय


यदुवंश :👉 राजा यदु के वंशज जिनकी 49वीं पीढ़ी में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था... उन्हीं के श्रीकृष्ण वंशज हैं... यदुवंशी चन्द्रवंश शाखा के यदुवंशी क्षत्रिय हैं आपकी जानकारी के लिए
थोड़ा ऐतिहासिक तथ्यों भगवान कृष्ण ..नन्द के वंशज जिन्होंने कृष्ण को पाला था..तो आपको पता होना चाहिए कि कृष्ण के पिता वासुदेव और बाबा नन्द आपस मे सगे चचेरे भाई थी...और दोनों ही चंद्रवंशी क्षत्रिय थे...


१..बाबा वासुदेव और बाबा नन्द का रिश्ता..


......श्रीकृष्ण के पिता का नाम राजा 'वासुदेव' और माता का नाम 'देवकी' था। जन्म के पश्चात् उनका पालन-पोषण 'नन्द बाबा' और 'यशोदा' माता के द्वारा हुआ।
भागवत के अनुसार वासुदेव यादव के पिता का नाम 'राजा शूरसेन' था तथा बाबा नन्द यादव के पिता का नाम राजा 'पार्जन्य' था तथा इनके बाबा नन्द सहित 9 पुत्र थे - उपानंद, अभिनंद, नन्द, सुनंद, कर्मानंद, धर्मानंद, धरानंद, ध्रुवनंद और वल्लभ। 'नन्द बाबा' 'पार्जन्य' के तीसरे पुत्र थे। शूरसेन और पार्जन्य दोनों सगे भाई थे। शूरसेन जी और पार्जन्य जी के पिताजी का नाम था महाराज देवमीढ।इस प्रकार बाबा वासुदेव और बाबा नन्द एक ही दादा की संतान थे तथा दोनों ही यदुवंश की शाखा 'वृष्णि' कुल से थे। आगे चल बाबा नन्द के कुछ वंशज जो वृष्णि कुल के ही यदुवंशी थे उन्होंने बाबा नन्द को पूज्य मान नन्दवंशी अहीर कहलाए तथा बाकी के बचे हुए वसुदेव और नन्द जी के वंशज कालांतर में भी 'वृष्णि' कुले यदुवंशी अहीर कहलाए.


'भागवत पुराण' में बाबा नन्द को गोकुल गाँव का चौधरी लिखा है तथा पूरा नाम "चौधरी नन्द यादव" लिखा है।
भागवत के अनुसार 'नन्द बाबा' के पास नौ लाख गायें थी। सच यही है की इस तरह से 'श्रीकृष्ण' का जन्म और पालन-पोषण 'यदुवंशी-क्षत्रिय' परिवार में ही हुआ था.....


2...अहीर/अभीर शब्द का अर्थ....


'अहीर' एक 'प्राकृत' शब्द है जो संस्कृत के 'अभीर' से लिया गया है जिसका अर्थ है 'निडर'.
अपनी निडरता और क्षत्रिय वंश के कारण की यदुवंशीयों का नाम 'अहीर' यादव...?भागवत के अनुसार यादवों के कुल 106 कुल हुआ करते थे जैसे .....अंधक, अहीर, भोज, स्तवत्ता, गौर आदि 106 कुलों को मिलाकर भगवान श्री कृष्ण के वंश की पुराणों के अनुसार यदुवंशियों की पूरी वंशावली प्रस्तुत कर रहा हूं... इसे ध्यान से पढ़िए..


1.....ब्रह्म
2.....ब्रह्मा के पुत्र अत्रि ऋषि
3....अत्रि ऋषि के पुत्र चन्द्रमा....इन्हीं से चन्द्र वंश का प्रारंभ हुआ तथा वंशज चंन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाए...
4....चन्द्रमा के पुत्र बुध
5....बुद्ध के पुत्र पुरुरवा
6....पुरुरवा के पुत्र आयु
7.....आयु के पुत्र नाहुष
8.....नहुष के पुत्र ययाति


9......महाराज ययाति की दो पत्नियां थीं.... ययाति का पहला विवाह गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से हुआ एवं इनसे दो पुत्र हुए...
1...यदु
2...तुर्वसु


• ....शर्मिष्ठा महाराज अयाति की दुसरी पत्नी थी तथा इनसे तीन पुत्र हुए इस प्रकार से महाराज ययाति के पांच पुत्र थे..
• 3.....अनू
• 4....द्रुहू
• 5.....पुरु


यहीं से चंद्रवंशी क्षत्रिय वंश मे दो महत्वपूर्ण वंश आरम्भ हुए....


यदु से यदुवंशी(यादव/अहीर)और पुरु से पुरुवंशी नामक वंश प्रारंभ हुए....


.....राजा यदु के चार पुत्र थे....सहस्रजित्,क्रोष्टा,नल और रिपु...यादव वंश मे पूर्व मे १०१ कुल थे,जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं.....


यदुवंशी:


(1)वृष्णि वंशी यादव.....महाराज वृष्णि के वंशज हैं।इस वंश मे महाराज सुरशेन,वासुदेव(भगवान श्री कृष्ण के पिता), महाराज पारजन्य( बाबा नन्द के पिता और महाराज शूरसेन के सगे भाई), बाबा नन्द (बाबा नन्द के वंशज इन्हें अराध्य मान नंदवंशी अहीर भी कहलाए) , श्रीकृष्ण,बलराम,देवी सुभद्रा, इत्यादि का जन्म हुआ है।श्रीकृष्ण का जन्म इस वंश मे होने के कारण इन्हें कृष्णौत अहीर भी कहते हैं।ये "सुरशेन प्रदेश"के शासक थे। इस वंश के राजा देवागिरी का सेउना राजवंश इसी कुल से थे और कृष्णौत अहीरों के वंशज माने जाते है।


(2)अंधक वंशी यादव......महाराज अंधक के वंशज हैं।महाराज आहुक, उग्रसेन,देवक( देवकी के पिता), कंस, माता देवकी(श्रीकृष्ण की माँ)इत्यादि का जन्म हुआ है।ये"मथुरा प्रदेश" के शासक थे।ये"मथुरौट"भी कहलाते है।ये यादवों के क्षत्रप थे।इनकी सेना १०००००००एवं आचार्य ३००००० थे।
इस वंश के कुछ राजा इस तरह से हैं...


(3) भोज वंशी यादव---महाराज महाभोज के वंशज हैं।इस वंश मे महाराज विदर्भ,चेदिराज,दमघोष,शिशुपाल इत्यादि का जन्म हुआ है।ये "विदर्भ प्रदेश"के शासक थे।


(4) ग्वालवंशी यादव---- पवित्र ग्वाल बाल के वंशज। मूलतः यदुवंशी राजा गौड़ के वंशज हैं.....और मूलतः ग्वालवंशी यादव बिहार और यूपी के पूर्वाचंल इलाकों में पाऐ जाते हैं...


(5)..हैहय वंशी यादव-----महाराज सहस्रजीत के वंशजहैं। इस वंश मे हैहय,महिष्मान, सहस्रबाहु अर्जुन,तालजंघ इत्यादि का जन्म हुआ था।ये"माहिष्मति प्रदेश" के शासक थे।इस वंश के" सहस्रबाहु अर्जुन"सातों द्वीपों के एकछत्र सम्राट थे...हैहय वंश यदुवंश का सबसे पुराना वंश है जो रामायण काल में भी थे....अहीर वंश का उदय इसी वंश से हुआ था और आगे चल इसी अहीर वंश और बाकी के वंशों से सम्मलित हो वृष्णी वंश बना था जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ था...इस कुल के राजा:
महाक्षत्रप राजा ईश्वरसेन अहीर,कलचुरी वंश के अहीर शासक, तथा साउथ के त्रैकुटा साम्राज्य के अहीर शासक भी इसी कुल के थे।


महाराज यदु द्वारा सर्प का संहार किए जाने के कारण उन्हें"अहीर" की उपाधि भी दी गई थी...कालिया नाग को हराने के बाद भगवान...श्रीकृष्ण को भी "अहीर"कहा जाता है..यादवों को "माधव" ,"आभीर(fearless)","अहीर"और "वार्ष्णेय"भी कहा जाता है। इन सभी वंशो को मिलाकर ही यदुवंश कहा जाता है....इस तरह से यादव वैदिक क्षत्रिय हैं..चन्द्रवंश शाखा के यदुवंशी क्षत्रिय हैं...यादव या यदु हमारा कुल है वंश है... और अहीर (अर्थात आभीर जिसका अर्थ है...निर्भीक/निडर...किसी से भी न डरने वाले)..👍


(श्री मद् भागवत महापुराण/शुकसागर,गर्ग संहिता,महाभारत के आधार पर...)


॥ जय द्वारिकाधीश ॥


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