ब्रेकिंग न्यूज ::--: आचार्य श्री भिक्षु सरकारी अस्पताल के दंत स्वास्थ्य विज्ञानी बी एम एम सिंह ने एक संभावित कोरोना मरीज़ पर लिखी मार्मिकता कविता :--पढें और कोरोना से घबराए नहीं
👌 आचार्य श्री भिक्षु सरकारी अस्पताल के दंत स्वास्थ्य विज्ञानी बी एम एम सिंह ने एक संभावित करोना मरीज जिसकी रिपोर्ट आर एम् एल अस्पताल से नही आईं है और वो अपने घर पर अपने परिवार के साथ रहते हुए सेल्फ क्वारेंटाइन है।।
उसकी मनःस्थिति का वर्णन अपनी कविता के माध्यम से किया है।
उस व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में एक एक दिन रिपोर्ट के इंतजार में शारीरिक मानसिक तनाव से से गुजरना पड़ता है।उस व्यक्ति के परिवार की क्या हालत होती होगी।
कवि आचार्य श्री भिक्षु सरकारी अस्पताल के दंत स्वास्थ्य विज्ञानी बी एम एम सिंह ने मुश्किल हालात में उम्मीद जगाने वाली बहुत ही सुंदर रचना की है 👉
एक दर्द बेचने बैठा हूं ।
सुनने वाला है ही नहीं ।।
मांगू तो रब से क्या मांगू ।
उसकी दे कुछ सकता नहीं ।।
दुनिया है मुझसे बेखबर ।
अपनों तक को है होश नहीं।।
अपनी मै कैसे बयां करू।
कोई सुनने वाला है ही नहीं ।।
दो दिन कैसे बीता था।
जब मैंने संयम रखा था ।।
खांसी नहीं बुखार नहीं ।
गला कुछ कुछ जकड़ा था।।
क्या करता मै किससे कहता ।
कौन था जिससे बाते करता ।।
बहुत छटपटाहट मन में होती ।
छाती में जब कंजेक्शन होती ।।
कोई समझता कोई ना सुनता।
कौन था जिससे बाते करता।।
परछाई जो मित्र थी मेरी ।
दूर हटाने को मन करता ।।
बच्चे कहते पापा जी मेरे ।
पास क्यों नहीं आते हैं ।।
कुण्डी बंद है उस कमरे में ।
क्यों नहीं बाहर आते हैं ।।
पापा मेरे पास में आओ ।
इतना दूर ना जाओ तुम ।।
याद तुम्हारी आती है ।
बंद कमरे से निकलो तुम।।
दूजा दिन है आज मेरा ।
फीवर आता जाता है। ।।
तीजा दिन यूं ही बीता ।
कई वर्ष बन जाता है ।।
चौथे दिन रुक_ रुक कर ।
फीवर आता जाता है ।।
गले और छाती के अंदर ।
कंजेशन बढ़ता जाता है ।।
रात बिताई सुबह बिताई ।
आर.एम.एल.आने जाने में ।।
तीन दिन तक रिपोर्ट ना आई ।
मैं रो बैठा बंद कमरे में ।।
क्या कर लूं कहां मै जाऊं ।
यह दिन भर सोचा करता हूं।।
सारे परिजन नजर लगाए ।
मायूस ना होने देता हूं ।।
रुक.. रुक कर कैसे बीत गया ।
कोई कल्पना कर सकता है।।
जो इस स्थिति से गुजर गया ।
वहीं कल्पना कर सकता है।।
चार दिनों के बाद जिंदगी ।
लौट के पटरी पर आईं ।।
लंबे अरसे बाद अस्पताल से ।
रिपोर्ट निगेटिव जब आईं ।।
दुखी नहीं तुम होना दोस्तो।
मन में आशा रखो तुम।।
घोर निराशा से बच कर।
पाओगे नव जीवन तुम ।।
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